पगडंडियां कुछ कह रही है
पगडंडियां कुछ कह रही है
आओ न बिहार
क्यों बस गए हो बाहर
थोड़ी हमारी सुध भी लेलो
कभी बचपन में
चोर सिपाही खेला करते थे
बासी रोटी और चीनी खाने के बाद दौड़ा करते थे
पानी, भात और प्याज के स्वाद के साथ दौड़ा करते थे
मकूनी को चाय में डूबो कर खाया करते थे
होरहा के स्वाद के साथ दौड़ा करते थे....
..........
आओ न बिहार
मेरी आंखे कर रही है आपकी इंतजार
छठ मनाने, महापर्व मनाने
अपनो से गले मिलने
पगडंडियों पर दौड़ लगाने।।
जब धान बिनकर
गेहूं बिनकर
मेरे रास्ते से सुकून भरी कदमों से चला करते थे
फुटबॉल और क्रिकेट के लिए
धान और गेहूं को बेचकर पैसा इकट्ठा किया करते थे
ब्रिटानिया बिस्किट के लिए मैच खेला करते थे
मेरे ऊपर खूब दौड़ लगाया करते थे.....
...................
आओ न बिहार
मेरी आंखे कर रही है आपकी इंतजार
छठ मनाने, महापर्व मनाने
अपनो से गले मिलने
पगडंडियों पर दौड़ लगाने।।
आपके यादों को समेटे
अब आंखे भी बूढ़ी हो चली है
दुर्गा पूजा,
दिवाली
सरस्वती पूजा
होली
मकरसक्रांति....की तरह
मेरे ऊपर दौड़ लगाने
खिलौने लेकर अपने घर को आते
आओ न बिहार
मेरी आंखे कर रही है आपकी इंतजार
छठ मनाने, महापर्व मनाने
अपनो से गले मिलने
पगडंडियों पर दौड़ लगाने।।
मैं अब मिटती जा रही हूं
मिट्टी की जगह पत्थर की बनती जा रही हूं
मेरा अस्तित्व अब खो रही है
आपके बाजार में खाए
चाट छोले,
सिंघाड़ा,
रामधनी की गुढ़हवा जलेबी,
बैर,
अमरूद.....की खुशबू
अब पुरानी बात हो चली है
कभी कभी
चाउमिन
बरगर
गोलगप्पे...
की खुशबू मिल जाती है...
..........
आओ न बिहार
मेरी आंखे कर रही है आपकी इंतजार
छठ मनाने, महापर्व मनाने
अपनो से गले मिलने
पगडंडियों पर दौड़ लगाने।।
अब मैं जीवन के आख़िरी दौर में हूं
मैं खत्म होती जा रही हूं
मिटती जा रही हूं
आपकी यादों के सहारे खड़ी हूं
बाद कुछ दिन की बात है...
बचपन छिनती स्मार्ट मोबइल
रील में उलझे हुई आपकी सोच
लक्ष्य विहीन जीवन.....
मानो बच्चे और जवान दोनो को घरों में कैद कर लिया हो
कुछ स्वरोजगार करने
कुछ रोजगार देने
आओ न बिहार
मेरी आंखे कर रही है आपकी इंतजार
छठ मनाने, महापर्व मनाने
अपनो से गले मिलने
पगडंडियों पर दौड़ लगाने।।।
Gunjan Kamal
04-Apr-2024 02:24 AM
बहुत खूब
Reply
Mohammed urooj khan
22-Mar-2024 12:32 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
Reply
Varsha_Upadhyay
21-Mar-2024 04:40 PM
Nice
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